History of The Chandigarh Kashyap Rajput Sabha Regd.

चंडीगढ़ कश्यप राजपूत सभा के फाउंडर सदस्य

द चंडीगढ़ कश्यप राजपूत सभा, समूह कश्यप समाज की जानकारी के लिए थोड़े शब्दों में सभा का इतिहास बताना भी जरूरी समझती है। साथियो, इस सभा के बनने से पहले अर्थात चंडीगढ़ शहर के जन्म से थोड़ा समय बाद कश्यप समाज के भाई जो कि अपने काम के संबंध में पंजाब के अलग अलग शहरों से आकर यहां गांव बजवाड़ा जहां कि इस समय किसान भवन की इमारत है, आ कर बस गए। इस गांव की जमीन में एक समाधि बाबा कालू जी की जो कि कश्यप समाज से संबंध रखते हैं, बनी हुई थी। यह जगह इस समय सैक्टर 23 में आ चुका है। कश्यप राजपूत समाज के भाई जिनमें स्वर्गीय चौधरी हंस राज टाक भी थे, जो कि इस सभा और पंजाब सभा के भी बहुत लम्बे समय तक प्रधान रहे, स्वर्गीय श्री मुंशी राम जी जो कि समाज के बहुत बड़े दानी सज्जन और धार्मिक संस्थाओं से संबंधित थे। स्वर्गीय श्री बनारसी लाल बागल जो कि बहुत ही अग्रणीय समाज सेवी नेता और सैक्टर 20 चंडीगढ़ की रेहड़ी यूनियन के प्रधान रह चुके हैं और स्वर्गीय श्री प्रकाश चंद और स्वर्गीय श्री अमर नाथ सैक्टर 20-डी चंडीगढ़ विजय होटल वालों के पिता स्वर्गीय श्री लाल चंद और स. अमरीक सिंह और उनके पिता स. सूरत सिंह आदि सभी बाबा कालू जी की समाधि पर इक्टठे हुए करता थे और अपनी भलाई और एकता के लिए विचार-विमर्श किया करते थे। धीरे-धीरे इस शहर में पंजाब और हरियाणा के शहरों से नौकरी के संबंध में कश्यप समाज के बहुत से भाईयों का आना शुरू हो गया। कश्यप समाज की मीटिंगों में मैंबर्स की गिनती बढऩी शुरु हो गई। बाबा कालू जी की समाधि पर एक मंदिर बनाने के लिए विचार हुआ, लेकिन समाज की आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण और सरकार की ओर से जमीन का कब्जा ना देने के कारण मंदिर का विचार सफल नहीं हुआ। सरकार ने जब समाधि की जमीन पर कब्जा कर लिया तो इस संबंधी प्रशासन के कई मीटिंग की गई और सरकार की ओर समाज को एक प्लाट देने के पेशकश की गई, जिसको स्वीकार करने के अतिरिक्त उस समय के नेताओं के पास और कोई विकल्प नहीं था। इसी दौरान सन 1966 में पंजाब का विभाजन हो गया। हरियाणा अलग राज्य और यू.टी. चंडीगढ़ नए बन गए, लेकिन समाज की मीटिंगों को काम चलता रहा।
समाज के भाईयों को एक प्लेटफार्म पर इक्टठे करने के लिए सर्वे किया गया और कई माननीय हस्तियों को भी समाज सेवा में आने के लिए विनती की गई। सभा को सारे समाज के मैंबर्स की सहमति से अस्तित्व में लाया गया, जिसमें स्वर्गीय श्री अमर सिंह, स्वर्गीय स. बहादुर सिंह, स्वर्गीय श्री ठाकुर सिंह तहसीलदार, स्वर्गीय स. तेजा सिंह, स्वर्गीय श्री राज कुमार, स्वर्गीय श्री बंता राम और स्वर्गीय श्री प्यारे लाल मल्ली आदि विशेष वर्णनीय हैं। क्योंकि उस समय चंडीगढ़ एक अलग केन्द्रीय शासित प्रदेश बन चुका था, इसलिए इसका नाम द चंडीगढ़ कश्यप राजपूत सभा ही रखना उचित समझा गया। सभा के सदस्यों की गिनती में बढ़ोतरी करने के काम और पंजाब, हरियाणा, यू.टी. दिल्ली, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान के कश्यप भाईयों से संबंध स्थापित करने का काम भी शुरु किया गया। चौधरी हंस राज टाक को सभा का पहला प्रधान, स्वर्गीय श्री प्यारे लाल मल्ली पहले जनरल सेक्रेटरी और श्री अमर नाथ को कैशियर चुना गया। इस दौरान जो भी समाज के सेवा की गई उसको विस्तार से लिखने से लेख लंबा हो जाएगा, इसलिए जरूरी जानकारी दी गई है।
चंडीगढ़ प्रशासन की ओर से प्लाट देने की पेशकश पर विचार-विमर्श हुआ और समाज के लिए धर्मशाला बनाने के लिए प्लाट लेने का फैसला लिया गया और उसके लिए सभा को सोसायटी एक्ट के अधीन रजिस्ट्रेशन नं 200 तिथि 30-9-1974 को रजिस्टर करवाया गया। पंजाब नेश्नल बैंक सैक्टर 19 चंडीगढ़ में खाता खोला गया। नक्शे तैयार करवाए गए, प्रशासन के साथ मीटिंग की गई और प्लाट की अलाटमैंट करवाई गई। चार कनाल के प्लाट की जगह एक कनाल का प्लाट तिथि 28-6-1982 को अलाट हुआ और उसको बनाने के पश्चात और जगह देने का वायदा किया गया। यह काम स्वर्गीय चौधरी हंस राज टाक की प्रधानगी में हुआ। इस काम में उनके साथ स्वर्गीय स. किशन सिंह बागी बतौर जनरल सेक्रेटरी और श्री राज कुमार कश्यप बतौर सीनीयर वाइस प्रधान, स. सूरत सिंह, स. अमरीक सिंह, श्री अमर नाथ, स्वर्गीय स. सोभा सिंह सपोलीया, श्री जे.के. दास, स. एच.पाल. सिंह, श्री रमेश चन्द्र, श्री पूरन चंद, श्री बनारसी लाल और बहुत से कश्यप समाज के साथ प्यार रखने वाले साथी शामिल थे। समाज को एकजुट करने के लिए कश्यप समाज परिवार सम्मेलन 1974 में करवाया गया और उसके बाद भी कई सम्मेलन करवाए गए। जिस समय इस भवन के निर्माण के लिए जमीन अलाट हुई उस समय समाज के लोगों की आर्थिक हालत बहुत कमजोर थी, साधन बहुत ही सीमित थे। जो भी थोड़ा बहुत पैसा इक्टठा किया गया था, उससे प्लाट की पहली किश्त दे दी गई थी। स्वर्गीय चौधरी हंस राज टाक और स्वर्गीय स. किशन सिंह बागीने जमीन अलाट होने के बाद जल्दी ही सभा की बागडोर स. अजीत सिंह ठेकेदार को दे दी, जिसके जनरल सेक्रेटरी श्री गुरदीप लाल मेहरा थे। उन्होंने बहुत ही हिम्मत से इसकी चारदीवारी का काम शुरु किया, जिसमें सबसे अधिक योगदान स. एच.पाल. सिंह का था जोकि उस समय सभा के चेयरमैन थे। एक स्टोर भी बनवा दिया गया। मीटिंग करने का स्थान जो कि बहुत लंबे समय से चौधरी हंस राज टाक का घर, सागर होटल सैक्टर 27 चला आ रहा था, वह इस प्लाट में होना शुरू हो गया। लेकिन बहुत दु:ख की बात हुई कि स. अजीत सिंह असमय स्वर्ग सिधार गए जिससे समाज को बहुत नुकसान हुआ। सभा की प्रधानगी की जिम्मेवारी स. सोभा सिंह सपोलीया के कंधों पर रख दी गई। उन्होंने भी शुरु किये गए काम को आगे ले जाने में बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया। इसके बाद सभा की कमेटी का नया चुनाव किया गया जिसके प्रधान स. बलदेव सिंह चुने गए। उस समय उनकी प्रधानगी में तिथि 13-4-1990 को धर्मशाला के लिए नींव पत्थर स. किशन सिंह बागी ने रखा। 14-1-1991 को सभा के प्रधान स. बलदेव सिंह ने सभा का निर्माण कार्य आरम्भ करवाया।

अप्रैल 2000 में सभा के अधिकारियों का सर्वसम्मति से चुनाव किया गया जिसमें स. बलजीत सिंह कखारू को चेयरमैन और श्री लाभ राम को जनरल सेक्रेटरी चुना गया। स. बलजीत सिंह कखारू 24-4-2010 तक चेयरमैन रहे और धर्मशाला का निर्माण कार्य पूरा करवाया। स. सुखदेव सिंह पूर्व वर्किंग प्रधान का भी इस काम में बहुत योगदान रहा है। इस समय में वैद श्री चंद नया गांव (देहरादून), मास्टर चतर सिंह बिलासपुर, स. बलजीत सिंह कखारू और श्री हेम राज टाक ने बहुत आर्थिक मदद की है। इसके बाद श्री हेम राज टाक को सभा का नया चेयरमैन चुना गया। उनके नेतृत्व में 17-4-2011 को सभा की ओर से भाई हिम्मत सिंह जी का याद में एक सम्मेलन करवाया गया। इसके बाद 2015 में श्री एन.आर. मेहरा सभा के चेयरमैन चुने गए और वह लगातार 8 साल तक चेयरमैन रहे।

वर्ष 2023 में 8 साल बाद 6 अगस्त 2023 को हुए सभा के चुनाव में स. कुलवंत सिंह को सर्वसम्मति से नया चेयरमैन चुना गया। स. कुलवंत सिंह इससे पहले सभा के सीनियर वाइस चेयरमैन भी रहे हैं। 13-8-2023 को इन्होंने सभा की कार्यकारिणी का गठन किया जिसमें इन्होंने पहली बार पिछले चेयरमैन एन. आर. मेहरा का भी पूरा इज्जत-मान किया और उन्हें अपनी नई टीम में शामिल किया। स. कुलवंत सिंह ने सभा के सभी सदस्यों और सभा में काम करने वालों को भी सम्मानित किया।