Kabotra Vansh Information

Kabotra Vansh is surname/subcaste or family lineage or clan in kashyap rajput community living in various states of India like Punjab, Jammu-Kashmir, Haryana, Delhi, Uttar Pardesh & Rajasthan. Baba Kaliveer Ji is Kul Devta of this family lineage. Annual Mela of Kabotra Vansh is celebrated in march month every year at devi nagar, ambala city. Kashyap Kranti magazine team feels proud to provide full information about customs & rituals for marriage, mundan & other family ceremonies of this clan,
कबोत्रा वंश के रीति - रिवाज

कुलदेव बाबा श्री कालीबीर जी
1. घर के लडक़े व बहुओं ने काले कपड़े नहीं पहनने। (घर की लड़कियां पहन सकती हैं.)
2. बहुएं बड़ों के आगे घूंघट करके माथा टेेकेंगी।
3. बाबा जी का दीया रविवार को सरसों के तेल के साथ जलता है। यह दीया घर की औरतें न जलायें केवल पुरुष जलायें और बाबा जी के स्थान पर जलायें।
4. बाबा जी के सामान को कोई स्त्री हाथ न लगाए।
5. हमारा बड़ों का दिन जन्म अष्टमी के अगले दिन गुगानवमी को मनाया जाता है।
6. बकरा गुगानवमी को ही चढ़ाया जाता है।
7. बकरा केवल ढोलों के साथ सुच्चे मुंह ही चढ़ाया जाता है।
8. बकरा चढ़ाने से पहले सिंदूर, मेहंदी, दही लगा कर नहलाना है और फूलों की माला बकरे के गले में डालनी है।
9. बकरा चढ़ाने वाले ढोली के कपड़े, बाबा जी के कपड़े, बुआदाती के कपड़े और मीठा साथ में चढ़ावें।
10. घर की लड़कियों को कपड़ों के ऊपर अपनी इच्छा अनुसार पैसे रखें।
शादी के बाद तरागों की विधि
बड़ों का सरूप, बेरी की टहनी, सुरमेदानी, मदानी, भठोरू, खिचीड़ी फीकी मांह की दाल की
तरागों की रस्म पूरे परिवार ने सुच्चे मुंह करनी है।
बड़ों को भोग लगाना है, पांच भठोरू, खिचड़ी और कुछ पैसे दो भठोरू बड़ों के नाम के
नए जोड़े ने माथा टेक कर भठोरू और खिचड़ी झोली में डलवाना है। परिवार के हर सदस्य को पांच-पांच भठोरू, खिचड़ी और दो-दो भठोरू मुंह झूटाली के देने हैं। इन रस्मों में हंसी-मजाक भी होता है। घर के जवाइयों की तरफ से, उनकी कोशिश खिचड़ी झूठी करने की होती है, खिचड़ी को झूठा होने से बचाना है। लड़कियां बंधन-मुक्त हैं।
शादी में बारात जाने से पहले दुल्हे को चने की खिचड़ी और दही से मुंह झुठाना है।
रीतों की विधि
भठोरू, खिचड़ी, बड़ों के सरूप, सुरमेदानी, मदानी, मांह साबत, चावल कच्चे,
दिन चढऩे के बाद बहुएं मेहन्दी नहीं लगाएगी,
नई चीज खरीद कर नहीं पहनेगी,
आठवें महीने में रीतें अमावस्या के आठवें दिन (चांदनी) रात में चढेंगी।
सबसे पहले अपने बड़ों को पांच भठोरू, खिचड़ी का भोग लगाना है।
उसके बाद दुल्हने मायके से लाया हुआ समाना बड़ों के सामने रख कर मनसेगी।
वही समान दुल्हने ने पहन कर ही बड़ों के सामने बैठना है। उसके बाद सास सूखा नारियल, फल और शगुन बहू की झोली में डालेगी और उसका मुंह झूठा करेगी।
फिर सबने मुंह झूठा करना है।
पांच भठोरू और खिचड़ी बड़ों के निकालने हैं।
दो-दो भठोरू और खिचड़ी मुंह झूठा करने के निकालने हैं।
लड़कियों के पैसे निकालने हैं। रीतों के बाद बहू नया समान लगा-पहन सकती है। रीतें लेने के लिए दुल्हन को मायके वाले लेने आएंगे और सास-ससुर लेने जायेंगे।
पहला बच्चे के जन्म के बाद चौंके चढ़ाने के विधि
मिट्टी का दीया
गाय के गोबर से विद माता बनानी है।
मोरी वाला पैसा, कोड़ी गले में डालनी है।
आधा मीटर लाल कपड़ा ओढऩा है,
मोरी वाला पैसा और कौड़ी बच्चे के गले में डालनी है कुछ समय के लिए, बाद में उतार देना है।
अगर पहला बच्चा लडक़ा है तो सवा पांच किलो गुड़ मनस कर शीरके में बांटना है और कड़ाह प्रशाद भी बनाना है।
(शरीके की रोटी अपनी पहुंच अनुसार)
पहला बच्चा लडक़ी है तो चौंके चढ़ाने पर 5 रोटियां, मांह की दाल की खिचड़ी और ऊपर कड़ाह प्रशाद रख कर देना है। 2-2 अंजारन शरीके में देने हैं। जो विद माता बनती है उसको अगले दिन जल प्रवाह करना है। रीतों और तरागों में हाथ में चावल लेकर उसमें थोड़ा पानी डाल कर अपने बड़ों और दीये को छींटा देकर माथा टेकना है।
चौंके चढ़ाने पर मां व बच्चे का कपड़े मायके वालों के होते हैं। शादी पर घर में तीन मटके (एक बड़ा और दो छोटे) रखने हैं।
1. बड़े मटके में पानी भर कर उसके ऊपर चपनी रखकर उस पर बड़ों का दीया जला कर परिवार के सभी ने माथा टेकना है। घर की बेटियां माथा नहीं टेकेंगी।
2. एक छोटे मटके में खिचड़ी वाली दाल व पैसे डालने हैं।
3. दूसरे छोटे मटके में आटा, गुड़ व पैसे डालने हैं।
4. तीनों मटके कनक बिछा कर उसके ऊपर रखने हैं।
भठोरू बनाने के विधि –
बड़ो का मनपसन्द भोग भठोरू ही है, लेकिन आज कल लोग सुविधा अनुसार पूड़ी कड़ाह बनाने लग गये हैं जो कि गलत है। उनको जो भोग लगता है वही लगाना चाहिए। भठोरू बनाने के लिए एक दिन पहले शाम को आटा गूंथना चाहिए। अनुमान के तौर पर 10 किलो आटा, 6-7 किलो गुड़, 80 ग्राम मीठा सोडा, गुड़ चाशनी बना के गर्म ही आटे में डालनी है। मीठा सोडा डालकर के आटा गूंथना है। आटे भठोरू जैसा बनाना जो कि हाथ से आराम से पूरी बन जाए। आटे को खुले बर्तन में डाल के रखना है क्योंकि रात को फूलता है। सुबह सुबह भठोरू सरसों के तेल में निकलें।
यह सारी राय बड़े बजुरगों से ली गयी हैं जो कि परम्परागत है।
किसी भी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए आप कबोत्रा वंश मंदिर प्रबन्धक कमेटी, देवी नगर, अंबाला (हरियाणा) से संपर्क कर सकते हैं : –
सुरिन्द्र कुमार – 92114-58397
मंगत राम – 98107-36592